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लेखक की तस्वीरSPS Community Media

कर्ज

अपडेट करने की तारीख: 11 अक्तू॰ 2021




कल हमारे घर के पास रहने वाली माया मामी को एक प्राइवेट कंपनी ने नया मिक्सर दिया। मिक्सर देखने आस-पास की कई महिलाएँ, उनके घर गईं। उन महिलाओं में मेरी बड़ी मामी भी थीं।


बड़ी मामी ने घर आकर हमें बताया कि 3000 रू. में बहुत अच्छा मिक्सर मिला है। उसके साथ चटनी, ज्यूस और मसाले पीसने के तीन अलग-अलग जार भी आए हैं। मम्मी को मैंने बोला, ”हम भी ऐसा ही मिक्सर लायेंगे।“


”रहने दे! हम तो बिना मिक्सर ही अच्छे हैं।“


आज सुबह जब मैं ऑफिस के लिए निकली तो देखा कि माया मामी अपने नये मिक्सर को बगल में दबाए मुहल्ले में घूम रहीं थीं। वे बहुत परेशान दिख रहीं थीं। मुहल्ले वालों से बोल रहीं थीं कि 3000 रू. का मिक्सर कल ही लिया है, 2000 रू. में रख लो मुझे पैसों की बहुत ज़रूरत है।


शाम को जब मैं घर वापस आई तो मम्मी बोलीं, ”माया भाभी अपना नया मिक्सर बेचने आयीं थी, मैंने बोल दिया कि वर्षा नहीं है, वो होती तो सोच लेते। फिर वो सामने वाले रामकरण भइया को एक हजार रू. में ही देकर चली गईं।“


”अच्छा, एक हजार में ही!“


ऐसी क्या मजबूरी आ गई, जो माया मामी कोे नया मिक्सर इतने सस्ते में बेचना पड़ा?


सुबह मैं माया मामी से मिलने उनके घर गई। वे लहसुन और मिर्च को सिलबट्टे पर पीस रहीं थीं।


”अरे वर्षा! आज इधर का रास्ता कैसे भूल गई?“


”बस आपसे मिलने आई थी मामी। आपने तो नया मिक्सर लिया था, क्यों बेच दिया?“


”मैंने कहाँ उसे शौक से खरीदा था, जबरन मेरे गले बाँध दिया।“


”मतलब?“


”मैं दो दिन पहले, सनावद की एक प्राइवेट कंपनी से लोन लेने गई थी क्योंकि उधारी चुकाने के लिए 25,000 रू. की जरूरत थी। वहाँ बताया गया कि 35,000 रू. लोन के साथ मिक्सर की स्कीम है। मिक्सर के 3000 रू. भी लोन के साथ अलग से चुकाने हैं, पैसे चाहिए तो मिक्सर लेना ही पडे़गा।“


”अच्छा“


”मिक्सर पकड़ा दिया और बोला कि दो दिन के बाद पैसे खाते में आ जायेंगे। मैं सोच रही थी कि लोन के पैसे आ जायेंगे, तो शुक्रवार की हफ्ते वाली कंपनी में 665 रू. की किश्त भर दूंगी। अभी तक खाते में पैसे नहीं आए और आज किश्त भरनी ही थी। मुहल्ले में किसके पास पैसे मांगने जाऊं, सब तो अपने जैसे ही हैं।“


”जब आपको 25,000 रू. की जरूरत थी, तो 35,000 रू. क्यों लिए?“


”वहाँ अपने हिसाब से लोन नहीं मिलता वर्षा, कंपनी की स्कीम के अनुसार ही लोन लेना पड़ता है। माथे पर इतना कर्जा है कि एक का कर्ज उतारने के लिए दूसरे से पैसा लो, और दूसरे का उतारने के लिए तीसरे से लो। ऐसा करते-करते मैं चार कंपनियों से लोन ले चुकी हूँ।“


”ऐसे तो आपके माथे कर्जा बढ़ता जायेगा। मम्मी के बचत समूह में तो ज़रूरत के हिसाब से छोटा या बड़ा लोन मिल जाता है। लोन वापसी की किश्तें अपनी सुविधा अनुसार बाँध सकते हैं, और समय पर अपने पास किश्त भरने के लिए पैसे नहीं हो, तो कुछ दिनों की मोहलत भी मिल जाती है।“


”अरे ये हफ़्ते वाले समूह में किश्त भरना ही पड़ता है। ये सर लोग किसी की मजबूरी नहीं समझते, उनको तो केवल पैसों से मतलब होता है।“





लोग इतने भी कठोर होते हैं, जो दूसरे की मजबूरी में भी अपना फायदा नहीं छोड़ते, यह सोचते हुए मैं ऑफिस आ गई।


दोपहर के समय चुपचाप बैठकर, खाना खा रही थी।


रानू दीदी ने आकर पूछा, ”आज मुँह क्यों लटका रखा है?“


”कल पड़ोस की मामी को प्राइवेट समूह की किश्त भरने के लिए, 3000 रू. का नया मिक्सर 1000 रू. में बेचना पड़ा।“


”वर्षा ये तो आम बात हो गई है, मैं 19 बचत समूह को संभालती हूँ, लगभग तीन सौ महिला सदस्यों के साथ काम करती हूँ। प्राइवेट कंपनियों को सिर्फ अपने मुनाफे से ही मतलब है। ये हमारे बचत समूह की तरह नहीं है, जहाँ मुनाफे के हकदार समूह सदस्य ही होते हैं। टावरबेड़ी मस्जिद चैक में रहने वाली शबनम दीदी 3-4 प्राइवेट कंपनियों के समूह से जुड़ी हैं, उन्होंने किश्त भरने के लिए घर के बर्तन तक बेच दिए।


ये कंपनियाँ किसी भी हालात में अपना मुनाफा नहीं छोड़तीं। लोन के ब्याज पर मुनाफा, साथ में स्कीम के नाम पर जबरजस्ती मिक्सर पकड़ाकर, उसकी कीमत में भी ब्याज जोड़कर मुनाफा, और ये पूरा मुनाफा कंपनियों के मालिकों को जाता है।“


ऐसी कंपनियो से लोन क्यों लेते हैं ?


यही सवाल मेरे मन में बार-बार आ रहा था। इसलिए मैं शबनम दीदी से मिलने उनके घर गई, वे मुझे दरवाजे पर ही मिल गईं।


”नमस्ते दीदी, मैं वर्षा हूँ, समाज प्रगति सहयोग के ऑफिस में काम करती हूँ।“


”आओ बैठो।“


”दीदी आपका समूह कैसा चल रहा है?“


”कौन सा समूह? मेरे तो चार समूह चल रहे हैं।“


”रानू दीदी मीटिंग लेती हैं, वो बचत समूह।“


”अच्छा कटोरा समूह! उसमें मैं दो-तीन महीनों से बचत के पैसे तक नहीं भर पाई।“


”क्यों नहीं भर पाए?“


”अरे दीदी, फलों के धंधे के भरोसे चार समूह से लोन ले रखा है, लेकिन धंधा चला ही नहीं।“


”क्यों?“


”पहले महात्मा गांधी रोड पर, राधा कृष्ण मदिंर के पास, मेरे पति फलों के दो ठेले लगाते थे। रोज 500 से 600 रू. का गल्ला उठाते थे। हम दोनों ने सोचा कि एक और नया धंधा शुरू करे। ऐसे भी अपने ठेले के लिए फल इंदौर से लाने ही पड़ते हैं, तो साथ में लोडिंग गाड़ी से बड़वाह और सनावद की दुकानों पर सप्लाई कर सकते हैं। फलों की सप्लाई का धंधा चल ही रहा था पर एक दिन बड़वाह में नगर पालिका द्वारा रोड से अतिक्रमण हटाया गया। इस वजह से हमारी ठेले लगाने की जगह हाथ से चली गई। कोई दूसरा दुकानदार थोड़े न अपनी दुकान के सामने ठेला लगाने देगा। फलों का ठेला छूट जाने से, हमारे नसीब फूटे... हमारे माथे कर्जा बढ़ता गया।“


”गाड़ी से जो माल सप्लाई करते थे, उसका क्या हुआ दीदी?“


”क्या बताऊं दीदी, इस धंधे में नए-नए थे, तो सही समझ नहीं बनी। धंधा बढ़ा ही नहीं सके, इसलिए उसमें भी घाटा गया। हफ़्ते वाली कंपनी और गाड़ी की किश्त चुकाने के चक्कर में रात को नींद नहीं आती थी।“

शबनम दीदी ने नई लोडिंग गाड़ी, 3 लाख 70 हजार रू. में खरीदी थी। गाड़ी का धंधा नहीं चलने पर, किश्त नहीं भर पाए। चार महीने पहले आई हुई गाड़ी को, उन्हें 80,000 रू. में बेचना पड़ा।


”वर्षा दीदी 80,000 रू. कहाँ खर्च हो गए, पता ही नहीं चला। कटोरा समूह में भी मेरा 40,000 रू. का लोन है। समूह में पैसा मांगते तो हैं, पर कभी इतना दबाव नहीं डाला कि घर का समान बेचना पड़ जाए।“


शबनम दीदी की मुसीबत यहाँ खत्म नहीं हुई। उनके पति ने कुछ पैसों से इंदौर में फलों का एक ठेला लगाया। इसे चलने में भी कुछ समय लगा, तो दीदी ने दो प्राइवेट कंपनियों से 30,000 रू. और 50,000 रू. का लोन लिया।


ये सुनकर मैं हैरान हो गई। माथे पर इतने लोन होने के बावजूद, कोई और लोन कैसे ले सकता है? लोग आज की मुसीबत टालने के लिए कल का सोचे बिना प्राइवेट कंपनी से लोन ले लेते हैं। ये सिर्फ इसलिए कि लोन मिलने के बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं?


”दीदी इन कंपनियों से आपने कितने ब्याज पर पैसा लिया है?“


”ब्याज तो हमने कभी पूछा ही नहीं दीदी। पैसों की जरूरत ही इतनी रहती है, कुछ भी ब्याज हो ले लेते हैं।“

बड़वाह में कम से कम 25-30 प्राइवेट कंपनियाँ हैं, जो लोन बांटती हैं। मैं उन्हीं कंपनियों में से एक कंपनी के ऑफिस में, ब्याज दर पता करने गई।


काउंटर पर बैठीं मैडम से मैंने पूछा ”सर से मिलना है।“


”आप बैठिए, सर अभी बिजी हैं।“


वहाँ ब्रेंच पर दो महिलाएँ बैठी हुईं थीं। मैं भी उनके साथ बैठ गई।


”आप भी लोन लेने आए हो क्या?“


”हमने तो लोन पहले ही ले रखा है, हमारे समूह की एक महिलाएँ किश्त नहीं भर रही हैं। इससे काफी दिक्कत शुरू हो गई है, इसलिए सर से बात करने आये हैं।“


”कैसी दिक्कत?“


”उस महिला की किश्तें भी हमें ही भरनी पड़ रही है। मीटिंग वाले सर का कहना हैं कि तुमने उस महिला को समूह में जोड़ा है, या तो उससे पैसा भरवाओं, या तुम खुद भरो।“


”आप सर से मिल लो।“


मैं केबिन के अंदर गई। सर एक बड़ी, गद्देदार कुर्सी पर बैठे, अपने कंम्प्यूटर पर कुछ कर रहे थे। मैंने उन्हें नमस्ते किया।


उन्होंने स्क्रीन से नज़र हटाकर, मेरी तरफ देखा और कहा, ”नमस्ते, क्या काम है?“


”सर, मेरी मम्मी को लोन चाहिए।“


”किस लिए?“


”मकान बनाने के लिए।“


“बैठिए। आप कहाँ रहते हो?“


”दशहरा मैदान के पास।“


”आपकी मम्मी क्या करतीं हैं?“


”मजदूरी करतीं हैं, और मैं भी जाॅब करती हूँ।“


”आपकी तो शादी हो जाएगी...। फिर भी, आपकी मम्मी को लोन मिल जायेगा, पर आपको कम से कम पाँच महिलाओं का एक समूह बनाना पडे़गा।“


”लोन तो मम्मी को ही चाहिए।“


”समूह नहीं बनाओंगे तो लोन नहीं मिलेगा। अगर आप लोन नहीं भर पाये, तो हम किसको पकड़ेंगे?“

”ब्याज कितना लगेगा?“


”18 से 24 प्रतिषत सालाना ब्याज है, हर एक स्कीम पर अलग-अलग ब्याज लगता है, जब आप लोन लेंगे तब आपको बता देंगे।“


”हमारे पास इकट्ठा पैसे आ जाए, तो हम पूरा लोन एक साथ चुका सकते हैं क्या?“


”कंपनी ने जो लोन पर ब्याज फिक्स किया है, वो पूरी राशि आपको भरनी ही पडे़गी। आप चाहे उसे छः महीने में भर दें, या दो साल की किश्तों में।“


कंपनियाँ मूल राशि पर लोन की पूरी अवधि का ब्याज जोड़कर, बराबर किश्तों में बाँट देतीं हैं। कायदे से हर किश्त चुकाने के बाद मूल राशि और ब्याज घटना चाहिए, पर ऐसा नहीं होता। इस तरह से ये तो शोषण ही हुआ न!


घर आकर पानी पिया और थोड़ा आराम करने लेट गई। आँख लगी ही थी कि एक दम से शोर सुनाई दिया। मैं और मम्मी बाहर आकर देखने लगे। एक सर कुछ महिलाओं पर चिल्ला रहे थे। हर रोज अलग-अलग सर आते और ऐसी धमकियाँ देकर चले जाते।


मेरे मुहल्ले के लोगों को पैसों की तंगी लगी रहती है। पैसा सही तरीके से आए या गलत तरीके से, वो लोन ले लेते हैं, आगे की बिल्कुल नहीं सोचते। एक एजेंट ने तो महिलाओं को 50,000 रू. के लोन पर 5000 रू. कमीशन का लालच देकर, उनसे आधार कार्ड, बैंक पासबुक की फोटोकाॅपी और फोटो ले लिए। एजेंट ने महिलाओं से बोला कि सारी किश्तें वह खुद भरेगा, उनको तो बस अपने खाते से पैसे निकालकर उसे पकड़ा देने हैं। कम से कम 150 महिलाएँ लालच के इस चंगुल में फँस गईं। एजेंट ने उन्हीं महिलाओं के दस्तावेज लगाकर, कई कंपनियों से लोन उठाए और पैसे लेकर भाग गया। अब वे कंपनी वाले अक्सर मुहल्ले में आकर महिलाओं से पैसे वसूल करते रहते हैं।


छोटे से लालच में फँसकर ये लोग डिफाॅल्टर हो गए। डिफाॅल्टर होते ही लोन मिलने के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं।


कुछ दिन बाद मैं मम्मी के बचत समूह की मीटिंग में उनके साथ गई। भोलेनाथ के मंदिर के पास महिलाएँ गोल घेरे में बैठ रहीं थीं, हम भी उनमें शामिल हो गए।


महिलाएँँ अपना और समूह का नाम आत्मविश्वास से बता रहीं थीं।


बारी-बारी से महिलाएँ अपनी बचत और लोन के पैसे देने लगीं।


”मैं 2600 रू. दे रही हूँ, जिसमें से 600 रू. बचत और ब्याज के हैं, 2000 रू. किश्त है। बाकि लोन फसल कटाई के बाद एक साथ जमा कर दूँगी।“


”ठीक है दीदी, आपके लोन पर एक महिने का ब्याज 375 रू. और बाकि बचे 225 रू. आपकी बचत में जमा कर रही हूँ। जैसे-जैसे आप किश्तें जमा करेंगी, ब्याज घटती मूल राशि के हिसाब से ही लगता जायेगा।


दीदी ब्याज कितना है, मालूम है न?“


”मालूम है दीदी“


”मालूम है तो बताओ“


”18 परसेंट सालाना“


वैशाली दीदी ने लोन के लिए मीटिंग में अपनी बात रखी। उन्हें अपनी किराना दुकान में सामान लाने के लिए 50,000 रू. की ज़रूरत थी।


”वैशाली दीदी की जमा बचत 10,000 रू. है, क्या आप उनको 50,000 रू. का लोन देना चाहेंगे?“

”हमारे बचत समूह का नियम है कि बचत का तीन गुना लोन मिलेगा, आपको सिर्फ 30,000 रू. दे सकते हैं दीदी।“


”पर मुझे तो 50,000 रू. की जरूरत है।“


”नियम सभी के लिए एक हैं दीदी, हम सब ने मिलकर ही तो बनाए हैं। कर्जा उतना ही लें, जितना भर सकं।“

दीदियों ने 30,000 रू. लोन देने के लिए अपनी सहमति दी।


”पैसे किराना दुकान के समान में ही लगाना, वरना लेने के देने न पड़ जाये।“


आखिर में दो दीदियाँ पैसे गिनने लगीं।


”बचत, ब्याज और लोन वापसी के कुल मिलाकर 45,600 रू. इकट्ठा हुए हैं।“


”हाँ दीदी, इतने ही हैं।“


”आज बैंक में पैसे जमा करने की किसकी बारी है?


”आज हमारी बारी है, हम जायेंगे।“


”ठीक है दीदी समूह की पासबुक ज़रूर लेकर जाना।“



 


Voices: Sapnabai Chandel, Radhabai Acharya, Noorbai Goyal, Raveena Barde, Anita Choyal, Rangu Kanuj, Rekha Pavar, Rabindra Barik, Sushma Sen, Roshni Chouhan, Babita Parihar, Varsha Ransore, Santu Chouhan, Sharmila Singh, Shreya Chaturvedi

Research: Varsha Ransore

Story writers: Varsha Ransore, Ajaad Singh Khichi, Jyoti Garhewal, Sandip Bhati, Iqbal Hussain

Sound recording and design: Aajad Singh Khichi, Pradeep Lekhwar and Milind Chhabra

Drawing: Maya Janine


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