top of page
  • लेखक की तस्वीरSPS Community Media

राहत

अपडेट करने की तारीख: 11 अक्तू॰ 2021





प्रधानमंत्री का भाषण - नमस्कार! आज रात 12 बजे से, सम्पूर्ण देश में सम्पूर्ण लाॅकडाउन होने जा रहा है।


नरेशन - कोरोना महामारी के दौरान लाॅकडाउन की घोषणा होने के बाद सड़के खाली और गलियाँ सुनसान हो गयी थीं। सब लोग अपने-अपने घरों में कैद हो गये। जो बड़े समृद्ध परिवार थे उनको जैसे ही पता चला कि लाॅकडाउन लगने वाला है, तो उन लोगों ने पहले ही अपने घर में राशन जमा कर लिया। लेकिन समस्या उन गरीब परिवारों को हुई, जो रोजाना की मजदूरी करके अपना घर जैसे-तैसे चलाते थे। पूरे लाॅकडाउन में काम न मिलना और पैसों की तंगी ने, सनावद के इन्द्रानगर मुहल्ले में रहने वाली प्रीति दीदी के लिए, कई मुश्किलें खड़ी कर दी।


प्रीति दीदी - हमको मालूम बी नी था कि लोकडाउन लगेगा। अब अपन इंसान क्या करते हैं, कि आज सोमवार है बजार करके ले आयेंगे, खा लेंगे हप्ता भर। आगे की पीट अपन को नी सुझती। अपन को मालूम नी था और जो बी अपने पास रहता, वो अपन खर्च हो जाता है। भई बन्द कर रये तो काम वाले को थोरी नी बंद करेंगे? सरकार इति थोड़ी नी रोक लगा देगी। पर वो तो सब दूर से पूरी रोक लगा दी।

सब्जी में थोड़ा सा कुछ जादा पानी-वानी करके बच्चों को खिलाना, तो सुबे की शाम को खा लेना, शाम की सुबे खा लेना। ऐसे करके मैंने तीन महीने परि परेशानी से। क्यूँकि जब मेरे आदमी का काम बी नी काम था, वो तो बाहर जाते हैं और नहीं मेरा काम था। ये काम बी नी मेरा आया था, और लाओ अपने पास अगर खतम हो जाता तो अपन मोहल्ले मे से बी नी किसी से व्यवहार कर सकते थे। कि भइया आज तू दे दे, मैं कल तेरे को दे दूंगी। कोई से ले सकते थे? तो 8-9 बजे तक तो रोटी बना लेती थी। 9 बजे के बाद में इत्ता धूप गिरती थी, जब बी मैं सरवा जो बोलते ना! गेहूँ काटते जो उम्बी होन गिरती, वो उम्बी होन, गिरी हुई उम्बी होन को उठाना पहले। थैले में इक्कठी करना। फिर उनको कूटना। फिर कूटने के बाद में जो भी गेहूँ निकले उसमें, झटकना-झाड़ना जब जाके 8 किलो 9 किलो गेहूँ निकलते थे अपने। तो वो गेहूँ होन को लाके हमने इक्कठे किये, तो यानी की हुए थे 35-36 किलो। तो तीन महीने तक वो राशन फिर अ कंटोल का मिला करा हमको दो-दो महीने का, फिर चावल दिये।

और एक रोज तो मेरे ससुर और साइट वाले भइया-भाभी सब बात कर रये थे, बोले की माता की मुट रखयी आज, क्या पता क्या होयगा क्या नय। तो पुलिस वाले आये चार जन। तो ये तो सब अपने-अपने घर में हो गये और तुम्हारे भइया को पकड़ लिया और तुम्हारे भइया को खूब मारी।


जितेन्द्र भैया - बोला था, सर ये मेरा मकान है। यहाँ दरवाजे के पास मेरा ही मकान है। तो एक एक ने आके पकड़ लिया, और दो ने आके पीछे से मारना चल्लु कर दिया।

प्रीति दीदी - बहुत दिक्कत हुई कि उनसे उठना बैठना, उनको आइडेक्स मसना, फिर गरम पानी की सेक करना। फिर वो तो इक्कीस दिन तक तो जो ज्यादा सख्त मना करा था ना जिन्होंने। तो वो तो नी बाहर ही नी निकले, और हम थोड़ा बहुत कपड़े-वपडे़ डालने के लिए यहाँ पर ओटले पर निकल कर जायें। और दीदी कमरा एक छोटा सा अपना, अंदर भी कहाँ तक रहेंगे? और मोहल्ले मेें बी सन्नाटा रहता था। मोहल्ले में भी नी किसी को साथ में बैठने बी नी देते थे, बोलने-चालने बी नीं देते थे।


नरेशन - सनावद के चाँदनीपुरा मुहल्ले में भी सन्नाटा पसरा है। यहाँ पर सुनाई देने वाले सतीष भैया के ढ़ोल की आवाज अभी बंद है। शादियों के इन दिनों में, उनके ढ़ोल की आवाज खूब सुनने को मिलती थी। लेकिन अभी उनका ढ़ोल, टिन से बने एक छोटे से कमरे में लटका हुआ है। उनकी पत्नी ऊषा दीदी की आखें लटके हुए ढ़ोल को देखकर नम हो जाती हैं।


ऊषा दीदी - परिवार में हम 12 जोन है मेडम। आनअ... एक कमाने वाला है मेडम आनअ 12 जोन मेडम।

”ऊषा रोय मत”

”रोओ मत न आप, रो क्यों रहे हो?”

भोत परेशान है मेडम, खर्चा भी भोत है। कभी चाय की पत्ती रहती तो दूध नी रहता। ऐसी-ऐसी परेशानी उठायी। काली चाय भी पी, कभी बनाने को नी रहता। आटा रहता है तो सब्जी भाजी नी रहती।

”भैया का सीजन में काम कितना हो जाता था?”

ये सीजन तो ऐसा ही रया, भोत परेशान...

”नी जैसे पहले”

पहले 30-40 हजार ऐसे भी हो जाता था। उसमें अपणा घर, चला करता कुछ भी।

दो-एक हजार रूपे पड़े थे, तो उससे क्या होता? हमको क्या मालूम था कि एक दम से लग जायेगा। फिर इसके पापा ने आट-एक दिन ठेला भी लगाया था, 8-15 दिन। तो उसमें से 2 सौ मिल जाये, 3 सौ भी मिल जाये तो उससे हम दूध-पाणी ये सब, हमारा आ जाता था।

”काय का ठेला?”

ये जामुन ... ये सेब का न इनका, तो 8-15 दिन उसमें भी हम चला करा। उसके बाद फिर पुलिस वाले नी लगाने देते थे।

”आपने लाॅकडाउन में भी लिया था किसी से कर्जा?”

हाँ लिया था ना मेडम। बोल तो रही 10 हजार एक से लिये थे, फिर एक से 5 हजार लिये। अन एक सेे फिर 5 हजार लिए, ऐसे ही हमने बीस हजार तो इसमे ज कर लिया कर्जा। तो कोई ने 10 से दिये तो कोई ने 5 से दिये। तो उनका अभी नी हाल तो ब्याज दिया। हर महीने ब्याज उनका देते हैं। अन वो जो लिये हैं, वो पैंसे तो अभी वहीं के वहींज है। मेडम के बाजु भी 60 हजार रूपये है मेरे पे, समु में।


नरेशन - जैस-जैसे लाॅकडाउन बढ़ता गया, खाने-पीने की समस्या के साथ-साथ नूरी दीदी के पति की तबियत भी ज्यादा बिगड़ने लगी। उनका परिवार भी सनावद के चाँदनीपुरा मुहल्ले में रहता है। सनावद में कोरोना केस मिलने से दीदी अपने पति को अस्पताल ले जाने में बहुत डर रही थीं।


नूरी दीदी - ब्लेड प्रेशर ये हुआ करा तो... काम पे दो चार दिन जाये फिर बिमार हो जाते थे। ऐसे ही परेशान लाॅकडाउन में भी फिर। चाये जीसकू तो बोले ये हो गया, कोरोना हो गया, ये हो गया न। सीधे ही ले जा रये थे। तो अपने कु डर भी लगे, बतलाने भी नीं... बतलाने से भी डरे। जाये नी असपताल, घर में ही जैसे-तैसे वो करे। एक रोज तो ऐसा हुआ कि ये उठे भी नी जराक... वो की मैं मरी जाऊँगा मेरे को असपताल लेके... तो उसके बाद जलगांव ले गये, पीतम हाॅसपिटल। वहाँ पे जाँचे हुई और आपरेशन हुआ दूरबीन से हुआ। 2 लाख रूपे तो यूँ कर्जा कर लिया और ये 2 लाख रूपे का यानि, आयुष्मान पे इलाज हुआ इनका। आपरेशन हैं अभी के, बहुत परेशानी थी।


नरेशन - प्रीती दीदी, ऊषा दीदी और नूरी दीदी समाज प्रगति सहयोग संस्था द्वारा संचालित बचत समूह कार्यक्रम से जुड़ी र्हुइं हैं। जब ऐसे ही हजारों सदस्यों की समस्या संस्था के कार्यकर्ताओं तक पहँुची, तो संस्था मदद हेतु आगे आई।


शुभम भइया - जब लाॅकडाउन लगा था, तो हमने मतलब मिटिंगस-विटिंगस तो नहीं हो रही थी। पर सभी मितानों से ये बोल के रखा हुआ था, कि किसी को किसी तरह की दिक्कत-परेशानी तो नहीं आ रही है। जो भी हमारे समूह के मेम्बर्स हैं। एक दो दीदी का फोन भी आया, फिर मितान दीदियों का भी फोन आया की भइया, हमारे समूह में भी मतलब दीदी लोगों को भी बहुत दिक्कत से अभी गुजर रहे हैं । उनके पास मतलब खाने को भी नहीं है और अभी कुछ काम-धन्धा भी नही चल रहा है। जो छोटा-मोटा, कुछ लोग ड्राइवरी करते थे, कुछ लोग फल-फ्रूट बेचते थे तो कुछ जगह लोग फल-फ्रूट मतलब बेचना भी चाह रहे, तो लोग खरीद नहीं रहे थे डर के मारे। तो बिलकुल भी मतलब पैसा नहीं है उनके पास और अभी खाने-पीने की बहुत दिक्कत है।


नरेशन - सदस्यों को आ रही इस परेशानी को देखते हुए, संस्था ने अलग-अलग दान-दाताओं से किराना बाँटने का प्रस्ताव रखा, जिसमें कई लोग मदद हेतु आगे आये। पैंसे इक्टठा होने के बाद, सबसे बड़़ी चुनौती किराना सामान की व्यवस्था करना था।


शुभम भइया - पहले तो ये था कि हम बड़वाह से ही मतलब लेने का तय हुआ था, कि आई मार्ट से ही हम, बड़वाह और सनावद दोनों लोकेशन का ले लेंगे। तो अब हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या आ गयी कि, उस समय लाॅकडाउन, मार्केट में माल है नी किसी के पास, और जिसके पास है भी वो थोड़ा बहुत बचा हुआ है। तो फिर बाद में ये हुआ कि आई मार्ट वाले ने मना ही कर दिया, कि मैं इतना नहीं दे पाऊँगा।


नरेशन - किराना सामान में आटे की व्यवस्था के लिए, महिलाओं की राम रहीम प्रगति प्रड्यूसर कम्पनी लिमिटेड ने अपना हाथ आगे बढ़ाया।


मीरा दीदी - अ जेसे लोकडावन लगा तो... जिसके पास खेती थी उसके पास अ खाने का साधन था, और जिसके पास खेती नी थी, वो मजदूरी वाले क्या करते उनको बी बड़ी परेशानी आयी। उनके पास ना खाने का साधन था, ना राशन मिल रा था, और ना पैंइसे था। और जिसके पास गंऊ था तो वो बेच नी सकते थे, कि गंऊ क्योंकि कम रेट में माँग रहे थे सेट-बनिया। वो क्या है हजार-12 सौ कुंटल में, लोकडावन का फायदा उठा रये थे। उस समय मण्डी भी बंद थी। तो उका बाद में हमारी जो राम रहीम प्रोडेशन कम्पनी है किसान जीजी न की। उनके पतो चल्यो है कि अपनी गरीब किसान और समूह की जीजी होन के साथ नुकसान हो रयो, तो बागली ठाना से परमेशन लियो। उका बाद में 1320 कुंटल हमन काँटाफोड़ लोकेशन सी गंऊ खरीदया। गाड़ी वाहन नी मिल रो थो। बड़ा मुश्किल सी देवास अवन्ती कम्पनी म हमन गंऊ भेज्या। गंऊ भेजण का बाद म वहाँ बारा सो कुंटल आटो बणवायो।


शुभम भइया - उसके बाद फिर ये हुआ था कि हमने मतलब, एक दाना बाजार में ही विठलदास करके थे विठल सेठ हैं अपने वो। तो उनसे हम जा करके मिले थे, तो उन्होंने मतलब बोला था कि मैं ये सारे सामान की व्यवस्था आपकी करवा दूंगा । आप बिल्कुल भी मतलब टेंशन मत लो। अब सवाल ये खड़ा हुआ कि उसको हम बाँटेगें कैसे? क्योंकि गाड़ियों की जो बात करेें तो वो तो रोक लगी हुई थी, कि हम समान लेके कहीं जा नहीं सकते। बाइक से जा रहें तो बाइक भी मतलब रोक रहे थे।

तो पहले तो हम एस.डी.एम सर से मिलने आये। यहाँ पे बड़वाह में तो एस.डी.एम सर ने मतलब लिखित में परमिशन देने के लिए हमसे मना कर दिया। कि हम मैं लिखित में कोई परमिशन नहीं दे सकता मेरे पास ऐसा ऑर्डर नहीं है।

नरेशन - एक तरफ लाॅकडाउन के सख्त नियमों में परमिशन नहीं मिल रही थी, वहीं दूसरी ओर सदस्यों के घरों में किराना सामान को लेकर खींचतान चल रही थी। कार्यकर्ताओं के कई बड़े अधिकारियों से बात करने पर भी परमिशन नहीं मिली, तो बड़वाह महिला प्रगति समीति की सदस्य आगे आईं।


समिति सदस्य - मेरा नाम पूजा है। मैं पीली मट्टी रहती हूँ, वर्षा प्रगति समूह से जुड़ी हूँ और मैं यहाँ अध्यक्ष हूँ यहाँ समिति से। लोकडाउन हमने हमारी स्थिति ऐसी चलायी की हम भूखे भी रहे एक दिन एक टेम खाया एक टेम खाया नी। तो हम समिति सी सब समूह वाली बाई होन 10-12 गयी थी। कय तो पुलिस वाले होन ने रस्ते में रोका भी हमको। की उधर कहाँ जारे? त हमने बोला की हम वहाँ पुलिस थाने में जारे, तो क्यों जारे? हमारी समिति से हमको समान मिल रा है गाड़ी का आडर नी दे रये...आदेश नी दे रये।

लकड़ी लेके भगाई हमको। लकड़ी लेके भगाई तो हम उधर सी फिर इधर गये तो बई होन मैन का आँय सी चलो आढ़ में। गली में से छोटी-छोटी गली में से निकल के गये। यहाँ क्यों आ गयी इती बाई होन? त हम तो सर गरीब हैं हमको तो कुछ मिली नी रा खाने के लिए तो हम तो यहीं रहेंगे, हमको कुछ भी लिख के दो तुम। तो बोले वहाँ कोरट पे जाओं तुम। तो हम वहाँ कोरट पे गये थे, ये तहसीलदार में। वहाँ भी कय की भगो बाई न कयकी कोरोना आई जायेगा। वहाँ से भी हमको हाथ धुलवा लिया और वहाँ बात भी नी करने दिया और पुलिस वाला हमको भगाये, की भगो क्यों आ गई बिमारी होन कयकी। ऐसा ही बोला। हाउ बोल्यो थो वहाँ। बिमारी होन बोले वो। पुलिस वाले होन की तो नौकरी मिल रयी तो वो तो बोलेंगे गरीब लोग न को। बोले लाॅकडाउन चल रये न तुम इधर-उधर फिर रहे बोले।

अभी खुद प बितती नी तो सब भागती न उ भी हड़ताल कर लेता कि हाउ हमक नौकरी का पैंयसा नी आया।

तो वहाँ गये तो वहाँ फिर साब होन आये, तो बात करी फिर बड़े सर होन आये समिति सी फिर वो लिखा हुआ लिख के दिया सर ने वहाँ से।

शुभम भइया - और उन्होंने भी फिर यहीं बोला कि हम एक गाड़ी से ज्यादा की परमिशन हम आपको नहीं दे सकते है क्योंकि हमारे पास इतने पास नहीं हैं। आप देख लो आपको 2 दिन में अगर चीज हो रही है तो तीन दिन में होगी ज्यादा से ज्यादा। तो हमने बोला ठीक है कि जैसे-तैसे अपन बाटेंगे।


नरेशन - कोरोना और पुलिस के डर से लोडिंग गाड़ी का इन्तजाम करना मुश्किल था। कई लोगों के मना करने के बाद, सनावद के शेख कलीम भैया अपनी गाड़ी देने को तैयार हुए।


शेख कलीम भइया - सभी को लेकर परेशानी थी। बाहर जाने में अपना परिवार खराब हो जायेगा ना अपन बाहर से कोई लक्षण ले आये तो। सबसे बड़ी समस्या तो वो थी। मन में डर बना रहता था लेकिन अब इनका जो काम, उस काम को लेकर के मैं थोड़ा सा उत्साहित हो गया और आगे बड़ गया। की नहीं ये भी एक सेवा भाव वाला काम है l पुलिस ने बडूद जाने से प्रतिबंद लगाया। कोरोना का पेशेन्ट निकला था। जहाँ जाने नहीं दिया और फिर उसके बाद मेें जैसे हम गाड़ी लोड कर रहे थे जहाँ पर, वहाँ भी पुलिस आ गयी थी। फिर उन्होंने देखा क्या है क्या नहीं, कैसे आये क्या हुआ तो फिर बताया करा फिर वो चले गये। और फिर गाड़ी पे भी वो बोर्ड-वगैरा सब लगा हुआ था तो इतना परेशानी नी आयी। पर जैसे यहाँ से गाड़ी मेरी थोड़ी दूर खड़ी रहती है, तो वहाँ जाने के लिए थोड़ा सावधानी बरतना पड़ती थी। कोई देख ले कोई मारे करे इसलिए इधर-इधर ऐसे गली-गुचे में से।


नरेशन - गाड़ी में किराना सामान भरने से पहले, गाड़ी को हर बार सेनीटाईज किया गया, जिससे कोरोना वायरस गाँव में न फैले। भीड़ इक्टठी न हो इसलिए सामाजिक दूरी का विशेष ध्यान रखा गया। किराना बाँटते वक्त मास्क और दस्तानों का उपयोग किया गया। इस तरह समूह और कार्यकर्तायों के कठिन प्रयास से लाॅकडाउन के दौरान 13000 समूह सदस्यों को किराना सामान बाँटा गया।


मीरा दीदी - किसान जीजी की कम्पनी है और हमारी कम्पनी से उदयनगर लोकेशन, बड़वाह लोकेशन और सनावद लोकेशन अ ऐसा करके 12 लोकेशन म किराना समान के साथ 10-10 किलो के पैकेट में आटो बाँटयो।


प्रीति दीदी - तो दस किलो आटा मिला फिर दाल मिली दो किलो, दो किलो शक्कर फिर मिर्ची पाॅवडर, धनिया पाॅवडर, जीरा, राई और साबन कपड़े धोने क ये सरफ कपड़े धोने का, साबुन मिली नम्बरवन। तो उसको कम से कम मैंने एक महीना, शक्कर तो खतम हो गयी थी शक्कर नी पूरी एक महीना लेकिन जो दूसरा सामान था, आटा भी नी पुरा एक महीना। तो थोड़ा-थोड़ा करके 20 से 25 रोज में मैंने पुराया उसको।


ऊषा दीदी - हल्दी, जीरा, पिसेल धणे, मिर्ची सब दिये, सब समान मिला। वो 15 दिन खाया हमने बचा-बचा के और थोड़ी सी दाल बणा ले कय ये कर ले। फिर रोटी देने वाले भी आते थे दिन में भी आते थे उनसे भी ले लेते थे। हम फिर ये रोटी धरते थे तो शाम को अपन खा लेंगे। ऐसा कर-करके हमने टाइम पास करे। शाम-शाम को तो पुरी-सब्जी कभी दे जाता था तो भोत खुश हो जाते थे कि भइया आज पुरी-सब्जी दी, ऐसी परेशानी उठायी।

समिति सदस्य - खाना देने वाले भी आते तो उधर के उधर बँट जाते, इधर गरीब बस्ती में कोई आते नी थे। हम कैसे खा रहे, हम दौड़ते तो लोग होन हमको हँसते कि जैसे की इनके घर कय है नहीं खाने के लिए, कैसे भिखारी लोग जैसे जाते।

हम भिखारी बणी गया था, लाॅकडाउन म अब काय करा फिर भिखारी सही। भिखारी कभी बने नहीं, भिखारी भी बनना पड़ा हमको।


नरेशन - प्रीति दीदी, नूरी दीदी और ऊषा दीदी को समूह द्वारा दिये गये किराना से थोड़ी राहत जरूर मिली। लेकिन लाॅकडाउन में काम धंधा बंद होने से हुये नुकसान के लिए वे लोग 11 महीने गुजर जाने के बाद भी संघर्ष कर रहे हैं।


नूरी दीदी - कमाने वाला कोई नी है घर में, और अब ये बिमार पड़े हुए हैं। अभी तो सालभर तक के डाक्टर ने मना करा इनको काम पे जाने का। डाक्टर भी बोले इनकी जान बहुत मुश्किल से बचे है बोले ये। डाक्टर ने बोला बहुत बड़ा आपरेशन था और बहुत मुश्किल से बोले तुम बचे हो बोले।

प्रीति दीदी - वो बोले नी परेशानी आती है जब सभी तरफ से आती है, और खुलती है जब सभी तरफ से खुल जाती है। तो अब यानि की मानो तो मेरा सुख का रास्ता मिल गया है। ये रेडिमेड काम भी करने लग गयी हूँ, कटलरी की दुकान भी डाल ली है। मेरे बच्चे भी अब थोड़े बड़े हो गये। छोटा वाला लड़का थोड़ा बहुत बेटे रहता है कटलरी की दुकान पे। तो गुरूवार से कल सण्डे तक यानि रविवार तक मैंने हजार रूपे का धन्धा मेरे बच्चे ने कर लिया। मेरे आदमी जाते है 3 सौ रूपे रोज पे रेती निकालने, नदी में से पानी में से रेती निकालते हैं छानते हैं जब आते हैं l लाॅकडाउन में 10-15 हजार रूपे कर्जा हो गया मेरे माथे, तो अब मैं धीरे-धीरे करके चुका दूंगी सबके पैंसे।


ऊषा दीदी - थोड़ा बहुत काम चल रहा तो चल घर अभी अपणा तो। आनअ अभी छोटा वाला देवर है तो वो हेम्माली अभी कर रा तो 100-150, 200 कई भी अपणा रोटी-सब्जी अपणा सब खा पी रये। पण ये है कि कर्जा नी देवाया कोई सा। अब ये क्या मालम ये कर्जा कब देवायगा?


पूजा दीदी - हमारी जिंदगी तो यही है रोजगार का खाना न रोजगार का लाना। रोज कमाओ-रोज खाओ, रोज कमाओ रोज खाना क्या ऐसे 20-20, 25 हजार की तन्खा थोरी है, तो हम पैंसे जोड़कर खायेंगे। 200-200, 250-250 रूपे तन्खा देते तो कैसे खायेंगे? आज उ 250 रूपे कमा के ले आये न 3 दिन घर बैठे, कैसे खायेंगे? मजदूरी नी हो री ना सर। लाॅकडाउन के पहले भी ऐसे ही थे न अभी भी वैसेज हम तो, लाॅकडाउन के बाद तो और ज्यादा ही बिगड़ गयी हालत।


 

Research: Varsha Ransore

Story writers: Varsha Ransore, Ajaad Singh Khichi, Pradeep Lekhwar

Mentor & Guide: Pinky Brahma Choudhury

Sound Mixing: Pradeep Lekhwar

Drawing: Maya Janine




498 दृश्य0 टिप्पणी

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें

सुखमा

मुमताज

bottom of page